THINKING OF TODAY

Friday, February 25, 2011

आज़ादी का मतलब

क्या क़ीमत है आज़ादी की
हमने कब यह जाना है
अधिकारों की ही चिन्ता है
फर्ज़ कहाँ पहचाना है

आज़ादी का अर्थ हो गया
अब केवल घोटाला है
हमने आज़ादी का मतलब
भ्रष्टाचार निकाला है

आज़ादी में खा जाते हम
पशुओं तक के चारे अब
‘हर्षद’ और ‘हवाला’ हमको
आज़ादी से प्यारे अब

आज़ादी के खेल को खेलो
फ़िक्सिंग वाले बल्लों से
हार के बदले धन पाओगे
‘सटटेबाज़ों’ दल्लों से

आज़ादी में वैमनस्य के
पहलु ख़ूब उभारो तुम
आज़ादी इसको कहते हैं?
अपनों को ही मारो तुम
आज़ादी का मतलब अब तो
द्वेष, घृणा फैलाना है ॥

आज़ादी में काश्मीर की
घाटी पूरी घायल है
लेकिन भारत का हर नेता
शान्ति-सुलह का कायल है
आज़ादी में लाल चौक पर
झण्डे फाड़े जाते हैं
आज़ादी में माँ के तन पर
चाक़ू गाड़े जाते है

आज़ादी में आज हमारा
राष्ट्र गान शर्मिन्दा है
आज़ादी में माँ को गाली
देने वाला ज़ीन्दा है

आज़ादी मे धवल हिमालय
हमने काला कर डाला
आज़ादी मे माँ का आँचल
हमने दुख से भर डाला

आज़ादी में कठमुल्लों को
शीश झुकाया जाता है
आज़ादी मे देश-द्रोह का
पर्व मनाया जाता है

आज़ादी में निज गौरव को
कितना और भुलाना है ?

देखो! आज़ादी का मतलब
हिन्दुस्तान हमारा है ?

आतंकवाद

आतंकवाद

किसने लूटी है ये वसुंधरआ


किसने हरियाली में रक्त भरा


गोलियाँ चलती हैं बमों के धमाकें हैं


इंसां मरते हैं जैसे जलते पटाखे हैं


कौन ले गया है अमन और चैन जहाँ से


चारों दिशा में गूँजता यह किसका नाद है


यह आतंकवाद है यह आतंकवाद है

Monday, February 14, 2011

मेरे आँगन में पहले इक्का-दुक्का

मेरे आँगन में पहले इक्का-दुक्का फिर सहसा ढेरों गुलाब खिल उठे. नया-नया घर था. बगीचें में गुलाब न हों तो बात जमती नही. अभी यह नजारा दो-चार दिन ही चला था कि फूल गायब होने लगे. हप्ते भर की चौकीदारी के बाद मैंने एक दिन भोर की बेला में पडोंस की कच्ची बस्ती में रहने वाली एक भद्र सी दिखाई देने वाली महिला को पकड़ ही लिया. पूछने पर वह बड़ी बेशर्मी से बोली, “पूजा के लिए तोड़े है.”
“क्यों भाई, क्या तुम चोरी के फूलों से पूजा करोगी?”
वह भुनभुनाती हुई चली गई. “बड़ी बंगले वाली बनती है. दो-चार फूल क्या तोड़ लिए गजब हों गया.
अगला अटैक पडोसन की बेटी का था, “हाय आंटी, मैं जरा उससे मिलने जा रही हूँ. एक फूल ले लूं ?” लिहाज के मारे मैं कुछ बोलूँ,उससे पहले उसने सबसे बड़ा और सुन्दर फूल तोड़ा,फिर तो आये दिन यही होता रहा और में मनन मसोसकर रह जाती थी. बाद में तो बस सूचना भर आती, “आंटी मैंने आपका एक गुलाब ले लिया था.” मेरा तो मन मसोसकर रह जाता था. जी मे आता था कि गला दबा दू मगर क्या करू पड़ोस का ख्याल करना पड़ता था. वैसे भी अगर चुपचाप तोड़ ले जाती तो में उसका क्या कर सकती थी?“हाय!हाय!क्या गुलाब खिले है? क्या करती हों इनका? अरे भाई पंखुडियां सुखाकर गुलकंद या शरबत क्यों नही बनातीं?”
साथ ही बनाने का तरीका भी बताती गई.

दिल जलकर राख हो गया. इतनी मेहनत से गुलाब उगाये है की उन्हें आगन में झूमता-इतराता देखूं. सुगंध से आँगन महकता रहे,और ये है कि गुलकंद और शरबत बनाने की बात कर रही है. बाजार ढेरों गुलकंद और शरबत उपलब्ध है. उसके लिए मेहनत की जरूरत क्या है. उनके मुताबिक हर वस्तु को उपयोग या धन में बदलना जरूरी है. डाली पर खिले फूल का सौंदर्य उन्हें बेकार लगता है.
आँगन में खिले गुलाब अब एक पैमाना बन गए है. हर व्यक्ति की दृष्टि में उनका एक अलग और सही उपयोग है. अम्मा उनसे पुष्पहार बनाकर ठाकुर की पूजा में चढाने को उनका सही उपयोग मानती है. नन्ही बिटिया अपनी मैडम को देने में. गुप्ता जी जब किसी उत्सव,शादी-व्याह जा रहे होते है तो एक निगाह हमारी बगिया पर डालना न भूलते. पर वे कभी अपनी इच्छा व्यक्त न कर सके और हमारे गुलाब बचे रहे.
खैर गुलाब की झाडियाँ काट-छाँट दी गयी. उनमे फिर से पत्ते व शाखें उग आई. अब फिर से फूलों का मौसम आ गया. आप भी अपने आँगन में गुलाब उगाईये. अपनी रातों की नींद उडाईये, साथ ही व्यक्ति परीक्षण की कसौटी भी बना लीजिये

एक चीता Cigarette का सुट्टा

एक चीता Cigarette का सुट्टा लगाने ही वाला था की अचानक एक चूहा वहां आया और बोला :

" मेरे भाई छोड़ दो नशा , आओ मेरे साथ भागो देखो ये जंगल कितना खुबसूरत है , आओ मेरे साथ दुनिया देखो "
चीते ने एक लम्हा सोचा फिर चूहे के साथ दौड़ने लगा .

आगे एक हाथी अफीम पी रहा था , चूहा फिर बोला ,
" हाथी मेरे भाई छोड़ दो नशा , आओ मेरे साथ भागो , देखो ये जंगल कितना खुबसूरत है , आओ मेरे साथ दुनिया देखो "
हाथी भी साथ दौड़ने लगा .

आगे शेर whisky पीने की तैयारी कर रहा था , चूहे ने उसे भी वही कहा .
शेर ने ग्लास साइड पर रखा और चूहे को 5- 6 थप्पड़ मारे .

हाथी बोला , " अरे ये तो तुम्हे ज़िन्दगी की तरफ ले जा रहा है , क्यों मार रहे हो इस बेचारे को ?"
शेर बोला , " यह कमीना पिछली बार भी Bhang पी कर मुझे 3 घंटे जंगल मै घुमाता रहा "

एक अंधी लडकी

एक अंधी लडकी थी । उसे उसके एक दोस्त के अलावा सबने ठुकरा दिया था । पर वो दोस्त उससे बहुत प्यार करता था । लडकी रोज़ उससे ये कहती कि अगर वो उसे देख पाती तो उसी से शादी करती । एक दिन किसी ने उस लडकी को अपने आंखे दे दीं । जब वो देख सकने लगी तो उसने देखा की उसका वह दोस्त अंधा था । दोस्त ने उससे पूछा की क्या अब वो उससे शादी करेगी ? लडकी ने साफ़ इनकार कर दिया । इस पर उसका दोस्त मुस्कुराया और चुप चाप उसे एक कागज़ देकर चला गया । उसपर लिखा था -


"मेरी आखों का ख्याल रखना"

Tuesday, February 8, 2011

Mere Humsafar

Mere humsafar, mere saath tum
sabhi mausamon mein raha karo.
kabhi dhool banke uda karo
kabhi phool banke gira karo.
kabhi dhoop banke uga karo,
kabhi shaam banke chaya karo.

mere haumsafar mere saath tum...
kabhi chaand banke dikha karo,
kabhi taron mein hansa karo.
kabhi saanso mein tum basa karo
kabhi aansuon mein baha karo.

mere humsafar mere saath tum...
kabhi rangon main tum dikha karo,
kabhi khushbuon se chua karo
kabhi nazaron se tum chupa karo
kabhi sapanon mein mila karo

mere humsafar mere saath tum..
kabhi aas banke dua karo
kabhi honsala bhi bana karo
kabhi intazaar bana karo
kabhi saath saath chala karo.

mere humsafar mere saath tum...
kabhi barishon mein mila karo
kabhi badalon mein chupa karo
kabhi humse tum kuch gila karo
kabhi shuru ek naya silsila karo

mere humsafar mere saath tum...
Kabhi leheron mein tum baha karo
kabhi sahilon pe mila karo, 
kabhi yuhin yaad aaya karo, 
kabhi khayalon se na jaaya karo.

mere haumsafar mere saath tum...
sabhi mausamon mein raha karo

FARQ SIRF ITNA SA THA

Teri doli uthi,
Meri mayyat uthi,
Phool tujh par bhi barse,
Phool mujh par bhi barse,


FARQ SIRF ITNA SA THA,

Tu saj gayi,
Mujhe sajaya gaya ,
Tu bhi ghar ko chali,
Main bi ghar ko chala,


FARQ SIRF ITNA SA THA,


Tu uth ke gayi,
Mujhe uthaya gaya ,
Mehfil wahan bhi thi,
Log yahan bhi the,


FARQ SIRF ITNA SA THA,

Unka hasna wahan,
Inka rona yahan,
Qazi udhar bhi tha, Molvi idhar bhi tha,

Do bol tere pade, Do bol mere pade,
Tera nikah pada, Mera janaaza pada,

FARQ SIRF ITNA SA THA,


Tujhe apnaya gaya ,
Mujhe dafnaya gaya

गब्बर सिंह' का चरित्र चित्रण

गब्बर सिंह' का चरित्र चित्रण

1. सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले
कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश
जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना
समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और
विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे
संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

२. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने
ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था.
पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार
ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था.
वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को
पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के
अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के
प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.


4. अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम
होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध
समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5. हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और
उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि
वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक युग का 'लाफिंग
बुद्धा' था.


6. नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद
उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और
करता.


7. भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए
भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो
भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना,
चांदी, बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.


8. सामाजिक कार्य: डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का
भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह
किए सो जाएं. सरकार ने उसपर 50,000 रुपयों का इनाम घोषित कर रखा था. उस
युग में 'कौन बनेगा करोड़पति' ना होने के बावजूद लोगों को रातों-रात अमीर
बनाने का गब्बर का यह सच्चा प्रयास था.


9. महानायकों का निर्माता: अगर गब्बर नहीं होता तो जय और वीरू जैसे
लुच्चे-लफंगे छोटी-मोटी चोरियां करते हुए स्वर्ग सिधार जाते. पर यह गब्बर
के व्यक्तित्व का प्रताप था कि उन लफंगों में भी महानायक बनने की क्षमता
जागी.